दीपावली खुशियों व रोशनी का पर्व है तथा हम इसे बड़ी धूमधाम से भी मनाते हैं पर क्या आप जानते हैं कि इस त्योहार पर विधिपूर्वक लक्ष्मी पूजन करके आप अपनी खुशियां चौगुनी कर सकते हैं। आइए हम सभी लक्ष्मी पूजन की सही विधि जानते हैं, जिससे दीपावली के अवसर पर जगमगाती रोशनी के साथ-साथ आप पर लक्ष्मी जी की कृपा हो जाए और आपके जीवन में धन की वर्षा होने लगे।
- दीपावली पर्व पांच पर्वों से मिलकर बना है- धनतेरस, नारक चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा तथा यम द्वितीया। पांचों दिन संध्या समय घर में कम से कम पांच दीपक (चार छोटे तथा एक बड़ा) अवश्य जलाएं।
- दीपक कभी सीधे भूमि पर न रखें, उसके नीचे आसन अवश्य दें। जैसे पहले थोड़े खील या चावल रखें फिर उस पर दीपक रखें।
- नरक चतुर्दशी को संध्या समय घर की पश्चिमी दिशा में खुले स्थान पर अथवा छत के पश्चिम में 14 दीपक पूर्वजों के नाम से जलाएं। उनके आशीर्वाद से समृद्धि प्राप्त होगी।
श्री लक्ष्मी पूजन विधि
किसी भी कार्य या पूजन को शुरू करने से पहिले श्री गणेश का पूजन किया जाता हैं। भगवान गणेश को स्नान कराएं। वस्त्र अर्पित करें। गंध, पुष, अक्षत अर्पित करें।
अब देवी लक्ष्मी का पूजन शुरू करें। माता लक्ष्मी की चांदी, पारद या स्फटिक की प्रतिमा का पूजन से भी उत्तम फल की प्राप्ति होती है। जिस मूर्ति में माता लक्ष्मी की पूजा की जानी है। उसे अपने पूजा घर में स्थान दें। मूर्ति में माता लक्ष्मी आवाहन करें। आवाहन यानी कि बुलाना। माता लक्ष्मी को अपने घर बुलाएं। माता लक्ष्मी को अपने अपने घर में सम्मान सहित स्थान देें। यानी कि आसन दें। अब माता लक्ष्मी को स्नान कराएं। स्नान पहले जल से फिर पंचामृत से और वापिस जल से स्नान कराएं।
अब माता लक्ष्मी को वस्त्र अर्पित करें। वस्त्रों के बाद आभूषण पहनाएं। अब पुष्पमाला पहनाएं। सुगंधित इत्र अर्पित करें। अब कुमकुम तिलक करें। अब धूप व दीप अर्पित करें। माता लक्ष्मी को गुलाब के फूल विशेष प्रिय है। बिल्वपत्र और बिल्व फल अर्पित करने से भी महालक्ष्मी की प्रसन्नता होती है। फिर दीपक जलाएं।
पारिवारिक परंपराओं के अनुसार तिल के तेल या सरसों के सात, ग्यारह, इक्कीस अथवा इनसे अधिक दीपक प्रज्वलित करके एक थाली में रखकर कर पूजन करने का विधान है। साथ ही 5 घी के दीपक भी जलाएं।
इसके बाद दीवाली कथा पढ़ें व आरती करें। इसके बाद प्रसाद स्वरूप मिष्ठान्न वितरण करके पान, सुपारी, इलायची फल चढ़ाएं और प्रार्थना करें। महालक्ष्मी पूजन के दौरन ’’ऊँ महालक्ष्मयै नमः’’इस मंत्र का जप करते रहें।
उपरोक्त पूजन के पश्चात घर की महिलाएं अपने हाथ से सोने-चांदी के आभूषण इत्यादि सुहाग की संपूर्ण सामग्रियां लेकर मां लक्ष्मी को अर्पित कर दें। अगले दिन स्नान इत्यादि के पश्चात विधि-विधान से पूजन के बाद आभूषण एवं सुहाग की सामग्री को मां लक्ष्मी का प्रसाद समझकर स्वयं प्रयोग करें। ऐसा करने से मां लक्ष्मी की कृपा सदा बनी रहती है।
अब श्रीसूक्त, कनकधारा स्तोत्र का पाठ करें।
क्षमा याचना
पूजा के दौरान हुई किसी ज्ञात-अज्ञात भूल के लिए श्रीलक्ष्मी से क्षमा-प्रार्थना करें।
न मैं आह्वान करना जानता हूँ, न विसर्जन करना। पूजा-कर्म भी मैं नहीं जानता। हे परमेश्वरि! मुझे क्षमा करो। मन्त्र, क्रिया और भक्ति से रहित जो कुछ पूजा मैंने की है, हे देवि! वह मेरी पूजा सम्पूर्ण हो।
यथा-सम्भव प्राप्त उपचार-वस्तुओं से मैंने जो यह पूजन किया है, उससे भगवती श्रीलक्ष्मी प्रसन्न हों।
ये सभी उपाय अनुभूत एवं प्रभावी है। कहा जाता है कि यदि दीपावली उचित ढंग से मनाई जाए तो वर्ष अच्छा व्यतीत है। अत: दीपावली के अवसर पर इन्हें अपनाकर लाभ उठाएं।
वास्तु आनुसार करें लक्ष्मी पूजन
लक्ष्मी पूजन करते समय वास्तु के निम्नलिखित विधियों तथा उपायों का ध्यान रखने से पूजन अधिक फलदायी होता है ---
- उत्तर दिशा धन व सम्पत्ति की दिशा होती है। इस कारण से पूजा के लिए इस दिशा का चुनाव करें तथा भगवान लक्ष्मी व गणेश की मूर्तियों को पूजा घर में उत्तर-पूर्व में रखें।
- इस बात का भी ध्यान रखें कि भगवान की मूर्तियों का मुख दरवाजे की ठीक सामने न हो।
- पूजा स्थल की सफाई व स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें।
- पूजाघर के पूर्व या उत्तर दिशा में पानी से भरे कलश की स्थापना करना बहुत ही शुभ माना जाता है।
- शुद्ध देशी घी का दीपक या फिर कपूर अथवा अगरबत्ती जला कर पूजा का प्रारम्भ करें।
- पूजा के दौरान भगवान गणेश सर्वप्रथम पूजे जाने के अधिकारी होते हैं। तथा उनके बाद नवग्रह फिर मां लक्ष्मी जी का आवाहन प्रारम्भ करें।
पूजन की विधि
- माता लक्ष्मी की मूर्ति को दूध, दही, घी, गंगाजल तथा शहद से पंचामृत बनाकर उससे स्नान कराएं और उसके बाद उसे गंगाजल से पुन: स्नान करा कर एक साफ कपड़े से पोछ लें फिर मां की मूर्ति की स्थापना कर लें।
- मां लक्ष्मी की मूर्ति को तिलक लगाएं तथा श्रृंगार की सामाग्री तथा वस्त्र चढ़ाएं।
- मां के समक्ष धूप व दीप दिखाते हुए उनकी कथा वाचें फिर भोग लगाकर दक्षिणा दें तथा उसके बाद आरती करें।
- अंत में पुन: मां को पुष्प अर्पण करने का विधान है तथा इसके बाद पूरी श्रद्धा से मां से प्रार्थना करें।
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